भगवान् राम ने अहिल्या स्त्री का नहीं
अपितु अहिल्या भूमि का उद्धार किया था
अहिल्या नाम पृथ्वी को कहा जाता है। भगवान राम का जीवन सदैव विज्ञान में विचरण करता रहता था। जहाँ वे महापुरुष थे,वहाँ उनका विज्ञान भी नितान्त रहा। जहाँ वे सदैव परमात्मा के क्षेत्र में रमण करते रहते थे, वहाँ वे परमाणुवाद में भी रमण करते रहते थे। मुझे वह काल स्मरण आता रहता है जब एक समय महर्षि भारद्वाज, महर्षि वशिष्ठ और महर्षि अतुरत महाराज इत्यादि का समाज एकत्रित हुआ था। उस सभा में यह निर्णय हुआ कि हम राम को महावैज्ञानिक बनाना चाहते हैं। क्योंकि राजा रावण का जो राष्ट्र है वह इतना विशाल है और उसके राष्ट्र में चरित्र की आभा न रहने से हमारा हृदय दुःखित हो रहा है। इसलिये हम चाहते हैं कि ऐसा कोई महापुरुष बने। महर्षि विश्वामित्र ने सभा में यह प्रतिज्ञा की कि मैं उनको धनुर्विद्या प्रदान करूँगा। महर्षि भारद्वाज ने यह कहा था कि मेरे द्वारा जितना भी राष्ट्र का द्रव्य है, जितना भी वैज्ञानिक यन्त्र है उनको अर्पित कर सकता हूँ जिससे वे रावण से संग्राम कर सकें उस सभा में यह निर्णय हुआ और विश्वामित्र, राम और लक्ष्मण दोनों राजकुमारों को लाये। याग किया और याग द्वारा उन्हें धनुर्विद्या प्रदान की। जब उन्हें धनुर्विद्या प्रदान करने लगे तो छः माह तक राम महर्षि भारद्वाज मुनि की विज्ञानशाला में रहे और उनकी विज्ञानशाला में उन्होंने नाना प्रकार के जहाँ यन्त्रों को जाना। वहाँ एक यन्त्र का निर्माण किया गया जो महर्षि भारद्वाज के शिष्य सुकेता नाम के ब्रह्मचारी के सहयोग से बनाया जो उस अनुसन्धानशाला में विराजमान थे। उस यन्त्र का नाम ‘‘अहिल्या कृतिभा स्वातन यन्त्र’’ कहा जाता था। उस यन्त्र में यह विशेषता थी कि पृथ्वी का जो दस-दस योजन गर्भ है उस गर्भ में वह यन्त्र यह निर्णय करा देता था कि अमुक धातु इतनी दूरी पर है, नाना प्रकार की धातु का निर्माण कितनी दूरी पर हो रहा है, ऐसा उन्हें वह यन्त्र दिग्दर्शन कराता रहता था। भगवान राम को जब यह विद्या पान करायी गयी अहिल्या नाम की विद्या का अनुमोदन कराया गया। अहिल्या नाम पृथ्वी का है, नाना प्रकार के खनिज-खाद्य जिसके गर्भ में विराजमान हैं, अग्नि का जो स्रोत चल रहा है, यह पृथ्वी में नाना धातुओं का निर्माण करती चली जा रही है। मानो पात बनता है, पात बन करके उसको शुष्क बनाया जाता है, उसी से उनका निर्माण होता चला जा रहा है। भगवान राम ने उस यन्त्र का निर्माण कराया।
पर्यायवाची शब्दों में यहाँ गौतम नाम चन्द्रमा का भी है और गौतम परमपिता परमात्मा को भी कहा जाता है। जहाँ अहिल्या पृथ्वी को कहा गया है वहाँ अहिल्या नाम रात्रि को कहा गया है। यहाँ दर्शन यह कह रहा है कि अहिल्या यहाँ रात्रि को कहा जाता है। जब रात्रि रूपी अहिल्या इस चन्द्रमा को अपने शृंगार रूपी अन्धकार को समर्पित कर देती है, उस काल में चन्द्रमा को गौतम कहा जाता है। मानो रात्रि को अपने में समेट करके अमृत की वृष्टि करता है। चन्द्रमा को सोम कहते हैं क्योंकि वह मन का विषय है। मन जब यह नाना प्रकार के शुद्ध-अशुद्ध विचारों से युक्त होता है तो यह मन ही चन्द्रमा का स्वरूप धारण कर लेता है। जैसे चन्द्रमा अमृतमयी वृष्टि कर रहा है, कृषि की भूमि में अन्न की स्थापना करने वाला कृषक प्रसन्न हो रहा है, चन्द्रमा अपनी कलाओं से युक्त होता हुआ इसमें अमृत को भरण कर देता है। यही चन्द्रमा है, जो पूर्णिमा के दिवस समुद्र की नाना प्रकार की आभाओं को ले करके यह अन्तरिक्ष में ओत-प्रोत कर देता है। चन्द्रमा को हमारे यहाँ गौतम कहा गया है। यह गौतम बन करके अमृत की वृष्टि कर रहा है, रात्रि को अपने गर्भ-स्थल में धारण कर रहा है। ऐसा कहा जाता है कि इतने में इन्द्र को प्रतीत होता है और वे आते हैं और अहिल्या पर आक्रमण करते हैं और अहिल्या को अपने में धारण कर लेते हैं और धारण करके मानो चन्द्रमा चिह्नवादी बन जाता है। यहाँ अहिल्या नाम रात्रि का है और इन्द्र सूर्य को माना है यह नाना भगों (किरणों) वाला सूर्य प्रातःकाल में उदय होता है और अन्धकार को अपने में धारण कर लेता है। मुनिवरो! अन्धकार कहाँ रहता है? यह जो नाना प्रकार की भगों (किरणों) वाला इन्द्र है, भग नाम किरणों को कहा गया है। नाना प्रकार की किरणों को ले करके अन्धकार को नष्ट कर देता है और अन्धकार इसके समीप नहीं रह पाता। इसी प्रकार गौतम नाम परमात्मा को कहा गया है। परमपिता परमात्मा जब सृष्टि का प्रारम्भ करता है तो उस समय यह जो अहिल्या नाम की प्रकृति है जो शून्यवत है, इसको क्रियाशील बनाता है और इसकी स्थली में विराजमान हो करके उसकी चेतना प्रकृति में कार्य कर रही है इसलिये परमात्मा को गौतम और प्रकृति को अहिल्या कहा जाता है। (२४ जुलाई १९७४, शुक्रताल)
श्रृंगी ऋषि कृष्णदत्त वेद यज्ञ विज्ञान न्यास
12/4 मॉल श्री, शिप्रा सन सिटी इन्दिरापुरम, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश
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